Oct 9, 2024

एक था जबर राज्य हरियाणा




एक था जबर राज्य हरियाणा 
जहां पर दूध दही का खाना
पप्पू आकर बोला एक दिन 
लगाऊं जलेबी का कारखाना 

विपक्षी दुष्चक्र, सांस्कृतिक चेतना और हरियाणा चुनाव

हरियाणा चुनावों में जो परिणाम आया है उसने पिछले कुछ वर्षों में चल रही जातिगत राजनीति, किसानों के नाम पर हुए दुष्प्रचार, संविधान के बदले जाने का भ्रम, बहुसंख्यक समाज में जातिगत विद्वेष पैदा करने के सभी प्रयासों को ध्वस्त किया है।

वामपंथी इकोसिस्टम और सांस्कृतिक चेतनाः

जातिगत दुर्भावना को हटाने के लिये सांस्कृतिक पुनर्जागरण का जो चरण केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार ने आरंभ किया, उसकी काट करना कांग्रेस और सपा की क्षमता से बाहर था। काशी कॉरीडोर, अयोध्या राम मंदिर, काशी तमिल संगमम्, माँ विंध्यवासीनी कॉरीडोर, उज्जैन महाकाल कॉरीडोर, नाथ कॉरीडोर, करतारपुर कॉरीडोर, जम्मू कश्मीर के मंदिरों का पुनरोद्धार, महाकुम्भ का भव्य आयोजन, भारत की परंपरा और विरासत का G20 देशों के समक्ष प्रदर्शन जैसे कार्य केंद्र और यूपी सरकार ने किये। इन कार्यों से जब भारतीयों में अपनी संस्कृति और परंपराओं पर गर्व करने की भावना पैदा हुई तो मैकाले की मानसिकता से ग्रस्त विपक्षियों ने इसकी काट के लिये बांटों और राज करो के अंग्रेजी सिद्धांत को फिर से अपना लिया।

विपक्ष की राष्ट्रविरोधी भयावह राजनीति

भारतीय राजनीति में जो सकारात्मक बदलाव 2014 के बाद हुए हैं उसने सबसे बड़ी हानि विपक्ष को पहुंचाई है। इस हानि को पूरा करने के लिये विपक्ष आज वह सब मुद्दे उठा रहा है जो राष्ट्र, समाज और देश की एकता, अखंडता के लिये विष का काम करेंगे। इस बदलाव ने विपक्ष की विचारधारा, विपक्ष की विश्वसनीयता, विपक्ष की क्षमता और विपक्ष की दिशाहीनता को बढ़ावा दिया है। चुनाव में भले ही विपक्ष ने थोड़ी बढ़ोत्तरी हासिल की हो लेकिन वैचारिक दृष्टिकोण से संपूर्ण विपक्ष में एक शून्यता उत्पन्न हुई है।

Sep 2, 2023

बोल जमूरे क्या क्या देखा


बोल जमूरे क्या क्या देखा
10 साल में क्या क्या सीखा

बेल पर रिहा दिखा एक नेता
जो तो है राजवंश का बेटा
देश की करता बाहर बुराई
चाहता है सत्ता की मलाई
चोर चोर मौसेरे भाई
सबमें चलती हाथा पाई
फिर भी कहते भाई भाई

Apr 14, 2019

आतंकियों के पक्षधर और मनोबल बढाते नेतागण।

क्या महाराजा सुहैल देव ने सालार मसूद को मसूद 'साहेब' कहा होगा? क्या पृथ्वीराज चौहान ने मुहम्मद गौरी को 'जी' कहा होगा? क्या अमेरिका के किसी राजनीतिज्ञ ने लादेन को 'सर' लादेन कहा होगा? क्या कोई व्यक्ति देश और अपने समाज के लोगों को घात लगाकर मारने वाले के प्रति सम्मान रख सकता है? इन सब प्रश्नों के उत्तर सामान्यतयानही’ में होंगे, लेकिन इसके साथ कुछ दूसरे प्रश्न भी हैं। क्या जयचंद मुहम्मद गौरी को सम्मानपूर्वक 'जी' कर के बुलाता होगा? क्या अमेरिका में रह लादेन के समर्थक उसको 'हाजी', 'गाजी' या 'सर' कह कर बोलते होंगे? इन प्रश्नों के उत्तर सामान्यतया 'हाँ' होंगे।


Mar 14, 2019

आचरण से वामपंथी और भाषणो में लोकतांत्रिक

आपको लगता है कि ममता बनर्जी के शासन संभालने के बाद बंगाल में वामपंथी शासन समाप्त हो गया था? यही बात अखिलेश शासन काल के लिये सोच कर देखिये, क्या वह एक लोकतांत्रिक दल होने के नाते समाजवादी विचारधारा पर काम कर रहा था? यही बात मध्य प्रदेश और राजस्थान की नई सरकार के बारे में विचार कर के देखें, क्या वो गांधी जी या शास्त्री जी वाली कांग्रेस की किसी भी विचारधारा से मेल खाते हुए शासन कर रहे हैं? कर्नाटक सरकार का शासन लोकतांत्रिक मूल्यों का सम्मान करते हुए शासन चला रहा है?  इन सब पर विचार करें तो यही आभास होता है कि लोकतांत्रिक दल होने के बाद भी इनकी कार्यशैली में वामपंथ ने तेजी से पैर पसार लिये हैं।

Feb 2, 2019

भारतीय संस्कृति, परंपरा और वामपंथी ढोंग

पर्यावरण संरक्षण, पितृसत्ता और महिला अधिकार ऐसे शब्द और कार्यक्रम हैं जिनका वामपंथियों द्वारा आज भारतीय परंपरा, संस्कृति के ऊपर शस्त्र के रूप में उपयोग किया जा रहा है. एक सुशील, आदर्श और कट्टर वामपंथी पर्यावरण संरक्षण के लिये दीवाली, होली, दही हांडी, मकर संक्रांति जैसे उत्सवों को चुनता है और कहता है कि ये पर्यावरण विरोधी हैं. उसे दीवाली पर वायु प्रदूषण, होली पर जल प्रदूषण, मकर संक्रांति पर पक्षी हत्या होती दिखती है.

Jan 2, 2019

2019, ईको सिस्टम और समाज की तैयारी

समाज वोट देकर सत्तायें बनाता है और हटाता है, 2019 एक बार फिर सरकार को दोबारा बनाने या हटाने के अधिकार का वर्ष है। सरकार से भी परे यह निर्णय देश और समाज की दिशा को निर्धारित करने, सत्ता द्वारा देश और समाज को लाभ होगा या नही इसको भी सुनिश्चित करने वाला है। सतह से देखने पर यह एक चुनाव और सरकार के चुनने की प्रक्रिया मात्र लगता है लेकिन कुछ दलों के लिये, और पिछले 70 वर्षों में उनके द्वारा बिछाये गये तंत्रजाल के लिये, यह अस्तित्व के बने रहने का भी प्रश्न है। दैनिक जीवन की कठिनाईयों से जूझते समाज का एक बड़ा भाग चुनाव के दौरान या उसके पहले के बने वातावरण से प्रभावित होता रहा है। यही कारण है कि 60 साल तक देश में राष्ट्रीय भाव रखने वाली सत्ता का अभाव रहा, और जब यह भाव सत्ता में ही नही था तो समाज में भी यह भाव जागरूकता के स्तर पर नही रहा।

Aug 17, 2016

अपने अखंड स्वरूप की ओर बढता भारत...

हम मे से कई लोग ऐसे हैं जो 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस पर दासता से मुक्ति का उत्सव तो मनाते हैं, लेकिन मन मे कहीं एक टीस है जो याद दिलाती है कि उस दिन हमारा देश खंडित हुआ था। कम से कम स्वतंत्रता सेनानियों ने खंडित भारत की कल्पना भी नही की होगी, स्वतंत्रता के बाद विदेशियों के प्रशासनिक अधिकारियों को ही प्रशासन संभालने देना मानसिक दासता का ही एक प्रमाण था। उस समय के तथाकथित स्वयंभू स्वतंत्रता सेनानियों ने मात्र स्वयं को ही स्वतंत्रता सेनानी कहलवाने का षडयंत्र किया और प्रशासन संभालने के लिप्सा में खंडित भारत स्वीकार किया।

Feb 18, 2016

एक पत्रकार की कथा...

मीडियाई सिद्ध हैं।

रक्त पीते गिद्ध हैं।।

दारू बोटी चलती है।

शाम शराब में ढलती है।

Jun 21, 2015

दो मुट्ठी बातें...

गर्मियों की रातें,
दो मुट्ठी बातें।

Jan 18, 2015

वो भोला भाला एक सांप...

वो भोला भाला एक सांप।
भाषण देता था खाँस खाँस।।
वो पहुंचा घाट बनारस के।
वापस लौटा फिर हांफ हांफ।।

Jan 17, 2015

पूर्व मंत्री की पोर्नसाइट बंद, यूजर्स मे भारी गुस्सा ।

मोदी सरकार की पोर्न साइट पर प्रतिबंध लगाने के अंदेशे के कारण एक पूर्व मंत्री द्वारा बनाई गयी वेबसाइट के यूजर्स मे बहुत आक्रोश है, एक गुप्त स्थान पर हुई चर्चा मे उन्होने कहा कि वेबसाइट के आकर्षक अफ्रीकी मॉडलों को देख कर उन्होने विडियो डाउनलोड करने के अधिकार खरीदे थे, लेकिन पूर्व मंत्री ने  मॉडलों के विडियो का बकाया नही दिया, मांगने पर मारपीट की, इसलिये मॉडलों ने विडियो के कॉपी राइट के लिये मंत्री जी को कोर्ट मे खींचने की धमकी दी जिससे गुस्साकर मंत्री जी ने वेबसाइट बंद की है। यूजर्स का कहना है कि मंत्री जी के लालच की सजा उनको क्यों मिले? यदि साइट चालू नही की गयी तो वो अपनी पुरानी पार्टी को वोट देंगे जिसने मंत्री जी को सरकार मे समर्थन दिया था। उधर मंत्री जी को पोर्नसाइट से होने वाली आय पर गिरी गाज से बहुत धक्का लगा है और कोढ में खाज ये है कि उनकी पार्टी ने उनसे मिलने वाले चंदे में बढोत्तरी की मांग की है।

Jan 3, 2015

PK का विरोध... दिग्भ्रमित, दिशाहीन उग्रता...

कुछ  समय से सोशल मीडिया पर पीके फिल्म का विरोध बढ रहा था और अब उसकी उग्रता भी देखी, बहुत पहले आये चाणक्य सीरियल में एक दृश्य था, जिसमे आचार्य चाणक्य बौद्धों के बढते प्रभाव से व्यथित हिंदू धर्म के आचार्यों को संबोधित करते हैं. वह विडियो खंड मैं यहां दे रहा हूं.




Mar 31, 2014

केजरीवाल दोहावली

तू AAPi AAPi करता चल ।
तू आपाधापी करता चल ।।
जब कोई तुझ से कुछ पूछे।
तू खांसी खांसी करता चल ।।


Sep 19, 2013

तुम क्या दोगे..?


अभी तो मुझे नारा तक समझ नही आया कि…. 
आधी रोटी खानी है, 
कि पूरी रोटी खानी है, 
कि खानी भी है कि नही खानी है, 
या फिर खिलानी है?
1 रुपये मे खानी है, 
कि 5 रुपये मे खानी है, 
कि 12 रुपये मे खानी है?

Sep 16, 2013

वो भयभीत हैं...

वो भयभीत हैं,
अपने काले कारनामों के खुलने से,
अपने पापों के जगजाहिर हो जाने से,
अपने अपराधों के जवाब मांगे जाने से,
अपनी सत्ता के छिन जाने से,
अपनी ताकत के हीन हो जाने से,
अपने कुर्ते के काले धब्बों के दिखने से...


Nov 17, 2012

कुंए के मीडियाई मेढक..


भारतीय मीडिया जिस प्रकार से पत्रकारिता के गंभीर दायित्व का उल्लंघन कर आमदनी के ऊपर ध्यान केंद्रित कर रहा है उस से इसकी प्रमाणिकता और विश्वसनीयता समाप्ति की ओर है. मीडिया में आये इस स्खलन का दोष, दायित्व मीडिया के उन पत्रकारों का ही है जो सत्य के स्थान पर अपने स्वामियों की लाभहानि के अनुसार मुंह खोलते हैं. बदलते सामाजिक और आर्थिक परिदृश्य मे मीडिया ने अपनी वरीयतायें भी बहुत तेज गति से बदली हैं. किन्हीं औद्योगिक घरानों की भांति यह राष्ट्र, समाज के प्रति अपने दायित्व को भूल अपने समाचारों, समाचारों के चयन, प्रस्तुत करने की भाषा और समाचार बनाने या ना बनाने के निर्णय राजनीतिक व्यक्तियों के लाभ हानि के अनुसार करने लगा है. इसमे ऐसे स्वघोषित पत्रकार और चैनल उत्पन्न हो गये हैं जिनके विचार बुद्धिमता के स्थान पर अपनी आमदनी के आकलन पर निर्भर हो रहे हैं. और जब सत्ता भ्रष्ट हो, और उस पर भ्रष्ट व्यवहार द्वारा कमाई गयी अकूत संपत्ति भी हो, तो ऐसे पत्रकार सत्ता के चरण पखार कर पीने मे संकोच / शर्म नही करते.

Nov 10, 2012

विदेशी कंपनियों के अनुसार चलती भारतीय दिवाली...


सुबह रास्ते मे एक विद्यालय के बालक पटाखों के विरोध मे हाथों मे कुछ पट्टिकायें लिये, नारे लगाते हुए चल रहे थे. पटाखों से मुझे कोई लगाव नही है, इन से धुंआ उठता है, ये प्रदूषण फैलाते हैं, इन से आग लगने का भय होता है, इन से चोट लगने का खतरा होता है, यह सभी बातें सत्य हैं, और जब श्री राम अयोध्या आये तो उस समय पटाखों का चलन भी नही था, अतः यह कहना भी उचित नही है कि यह श्री राम के अयोध्या पहुंचने के समय से चला आ रहा है.