Apr 14, 2019

आतंकियों के पक्षधर और मनोबल बढाते नेतागण।

क्या महाराजा सुहैल देव ने सालार मसूद को मसूद 'साहेब' कहा होगा? क्या पृथ्वीराज चौहान ने मुहम्मद गौरी को 'जी' कहा होगा? क्या अमेरिका के किसी राजनीतिज्ञ ने लादेन को 'सर' लादेन कहा होगा? क्या कोई व्यक्ति देश और अपने समाज के लोगों को घात लगाकर मारने वाले के प्रति सम्मान रख सकता है? इन सब प्रश्नों के उत्तर सामान्यतयानही’ में होंगे, लेकिन इसके साथ कुछ दूसरे प्रश्न भी हैं। क्या जयचंद मुहम्मद गौरी को सम्मानपूर्वक 'जी' कर के बुलाता होगा? क्या अमेरिका में रह लादेन के समर्थक उसको 'हाजी', 'गाजी' या 'सर' कह कर बोलते होंगे? इन प्रश्नों के उत्तर सामान्यतया 'हाँ' होंगे।


Mar 14, 2019

आचरण से वामपंथी और भाषणो में लोकतांत्रिक

आपको लगता है कि ममता बनर्जी के शासन संभालने के बाद बंगाल में वामपंथी शासन समाप्त हो गया था? यही बात अखिलेश शासन काल के लिये सोच कर देखिये, क्या वह एक लोकतांत्रिक दल होने के नाते समाजवादी विचारधारा पर काम कर रहा था? यही बात मध्य प्रदेश और राजस्थान की नई सरकार के बारे में विचार कर के देखें, क्या वो गांधी जी या शास्त्री जी वाली कांग्रेस की किसी भी विचारधारा से मेल खाते हुए शासन कर रहे हैं? कर्नाटक सरकार का शासन लोकतांत्रिक मूल्यों का सम्मान करते हुए शासन चला रहा है?  इन सब पर विचार करें तो यही आभास होता है कि लोकतांत्रिक दल होने के बाद भी इनकी कार्यशैली में वामपंथ ने तेजी से पैर पसार लिये हैं।

Feb 2, 2019

भारतीय संस्कृति, परंपरा और वामपंथी ढोंग

पर्यावरण संरक्षण, पितृसत्ता और महिला अधिकार ऐसे शब्द और कार्यक्रम हैं जिनका वामपंथियों द्वारा आज भारतीय परंपरा, संस्कृति के ऊपर शस्त्र के रूप में उपयोग किया जा रहा है. एक सुशील, आदर्श और कट्टर वामपंथी पर्यावरण संरक्षण के लिये दीवाली, होली, दही हांडी, मकर संक्रांति जैसे उत्सवों को चुनता है और कहता है कि ये पर्यावरण विरोधी हैं. उसे दीवाली पर वायु प्रदूषण, होली पर जल प्रदूषण, मकर संक्रांति पर पक्षी हत्या होती दिखती है.

Jan 2, 2019

2019, ईको सिस्टम और समाज की तैयारी

समाज वोट देकर सत्तायें बनाता है और हटाता है, 2019 एक बार फिर सरकार को दोबारा बनाने या हटाने के अधिकार का वर्ष है। सरकार से भी परे यह निर्णय देश और समाज की दिशा को निर्धारित करने, सत्ता द्वारा देश और समाज को लाभ होगा या नही इसको भी सुनिश्चित करने वाला है। सतह से देखने पर यह एक चुनाव और सरकार के चुनने की प्रक्रिया मात्र लगता है लेकिन कुछ दलों के लिये, और पिछले 70 वर्षों में उनके द्वारा बिछाये गये तंत्रजाल के लिये, यह अस्तित्व के बने रहने का भी प्रश्न है। दैनिक जीवन की कठिनाईयों से जूझते समाज का एक बड़ा भाग चुनाव के दौरान या उसके पहले के बने वातावरण से प्रभावित होता रहा है। यही कारण है कि 60 साल तक देश में राष्ट्रीय भाव रखने वाली सत्ता का अभाव रहा, और जब यह भाव सत्ता में ही नही था तो समाज में भी यह भाव जागरूकता के स्तर पर नही रहा।