Apr 14, 2019

आतंकियों के पक्षधर और मनोबल बढाते नेतागण।

क्या महाराजा सुहैल देव ने सालार मसूद को मसूद 'साहेब' कहा होगा? क्या पृथ्वीराज चौहान ने मुहम्मद गौरी को 'जी' कहा होगा? क्या अमेरिका के किसी राजनीतिज्ञ ने लादेन को 'सर' लादेन कहा होगा? क्या कोई व्यक्ति देश और अपने समाज के लोगों को घात लगाकर मारने वाले के प्रति सम्मान रख सकता है? इन सब प्रश्नों के उत्तर सामान्यतयानही’ में होंगे, लेकिन इसके साथ कुछ दूसरे प्रश्न भी हैं। क्या जयचंद मुहम्मद गौरी को सम्मानपूर्वक 'जी' कर के बुलाता होगा? क्या अमेरिका में रह लादेन के समर्थक उसको 'हाजी', 'गाजी' या 'सर' कह कर बोलते होंगे? इन प्रश्नों के उत्तर सामान्यतया 'हाँ' होंगे।


अब कुछ व्यवहारिक प्रश्न। यदि कोई व्यक्ति आपके साथ बातें करते हुए 'लादेन जी', 'हाफिज साहेब' या 'मसूद अजहर जी' कहे तो आपके मन में उस व्यक्ति के प्रति क्या धारणा बनेगी? ये वो प्रश्न हैं जो देश को आज खुद से पूछने हैं, क्या हम वैचारिक रूप से पशु हो गये हैं, जो किसी  के बोलने से उसका अर्थ नही समझ पाते? देश में आतंक अनेकों रूपों में सामने रहा है। हिंसा वाला आतंक तो समझ आता है, वो दिखता है, उससे हुई चोट दिखती है, लेकिन जब कोई राजनेता जवानों की हत्या करने वालों को 'साहेब' और 'जी' कहता है तो क्या वो चोट  दिखती है जो सर्वोच्च बलिदान दे चुके जवानों के परिवारों और एक सामान्य देशवासी को लगती है।
किसी राजनेता का साहस इतना कैसे बढ़ सकता है कि वो सत्ता भी चाहता है और जो उसे सत्ता देने वाले हैं, उनकी हत्याओं के जिम्मेदार आदमी कोसाहेबऔरजीकह कर बुलाता है। ये साहस कोई 10 या 20 सालों में उत्पन्न नही हुआ है। भारत की बुद्धिजीविता को दबाकर जो बौद्धिक पिशाच निकले हैं, वो बहुत पहले से ऐसा वातावरण तैयार करने में लगे थे। उन्होंने वर्षों से शिक्षा संस्थानों, रंगमंच, और मीडिया में ऐसे लोगों का निर्माण किया है जिन्हें आतंकी और उनकी विचारधारा में कुछ भी गलत नही लगता। बदले में मिलने वाला पैसा उन्हें ना सिर्फ विलासिता उपलब्ध कराता रहा है, बल्कि उन्हें बुद्धिजीवी की तरह स्थापित भी करता है राजनैतिक लोग उनसे लाभ उठाते है, और वो राजनीति से लाभ उठाते हैं यह बुद्धिजीवी मानसिक रूप से इतने दिवालिया हो चुके हैं कि आतंकवादी किस व्यवहार के योग्य होता है, यह वे भी नही जानते, और उसको बचाने के लिये यह रात 3 बजे तक प्रयास करते हैं।
अपने आस पास इसी प्रकार से धूर्त बुद्धिजीवी लोगों में घिरे राजनैतिक लोग भी इस वातावरण के इतने अभ्यस्त हो चुके हैं कि उनके मुंह से हाफिज, मसूद और लादेन जैसों के लियेजीऔरसाहेबस्वतः ही निकल जाता है। किसी आतंकी कोजीयासाहेबकहना गुलाम या भयभीत मानसिकता का उदाहरण है। जो व्यक्ति अपने देश और समाज के ऊपर अत्याचार करने वाले व्यक्ति को भीजीऔरसाहेबकहे, वो या तो उन लोगों का गुलाम होगा, या फिर उनसे भयभीत होगा, वरना एक स्वाभिमानी राष्ट्र का स्वाभिमानी व्यक्ति अपनी सेना और आम नागरिकों की हत्या करने वाले के साथ उसी भाषा में बात करता है, जिसमे उसे समझ आता हो। हमारे राजनैतिक तंत्र में घुसे हुए ये गुलाम, डरे हुए अगर आज आतंकादियों कोजीऔरसाहेबकह रहे हैं, तो कल को ये उनका सार्वजनिक अभिनंदन कर उनके जीवन को यहां की पाठ्य पुस्तकों में भी जुड़वा सकते हैं। इतिहास वही लिखता है जो विजयी होगा, यदिसाहेब’ औरजी’ वाले लोग विजयी हुए तो हमारी आने वाली पीढी पढेगी कि पाकिस्तान के हाफिजसाहेबऔर मसूद अजहरजीमहान थे, और यदि अपने देश पर गौरव करने वाले विजयी हुए, तो फिर आने वाली पीढी याद करेगी कि इस महान देश ने 800 सालों से संघर्षरत भारत को उस आतंक से मुक्ति दिलायी, जिनसे लड़ते हुए उनकी पिछली कई पीढियों ने बलिदान दिया।

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